
सुरताज स्पेशल चिल्ड्रन और उनके माता- पिता के लिए “पेन-टू-पर्पज” अवॉर्ड का हुआ आयोजन
गुरुग्राम: सुरताज स्पेशल चिल्ड्रेन फाउंडेशन की संस्थापक नरिंदर कौर के नेतृत्व में एक भावुक पहल के तहत, पेन-टू-पर्पज अवॉर्ड सेरेमनी का आयोजन इन्फ़ाइटी बैंक्वेट हाल मोती नगर नई दिल्ली में किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य उन माता-पिताओं के साहसिक सफर को सम्मानित करना था जो विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों की परवरिश कर रहे हैं।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. प्रवीन गुप्ता, प्रमुख निदेशक एवं न्यूरोलॉजी प्रमुख, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुड़गांव उपस्थित रहे। साथ ही माननीय अतिथियों की एक विशिष्ट टीम डॉ. नेहा रस्तोगी, संक्रमण रोग विशेषज्ञ, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट,मेघा गोयल, मालिक ट्रेंड सैलून राजौरी गार्डन,बी.के. सरिता दीदी ब्रह्मकुमारी पश्चिम विहार शाखा,शालू दुग्गल सामाजिक कार्यकर्ता,विपिन गर्ग, दिल्ली के ब्लड मैन,एएसआई ज्योति देवी दिल्ली पुलिस से उपस्थित रहे।
समारोह में उन लोगों को सम्मानित किया गया जिन्होंने समाज में बदलाव लाने में अपनी सेवाएं दी हैं, साथ ही विशेष ज़रूरतों वाले बच्चों के समर्पित माता-पिता को भी पुरस्कृत किया गया, जिनकी कहानियाँ साहस, बलिदान और निस्वार्थ प्रेम की मिसाल हैं। दिल्ली मलखम टीम और आयोजन के गायकों ने अपनी प्रस्तुतियों से कार्यक्रम में एक प्रेरणादायक और उत्साहपूर्ण माहौल बनाया। सुरताज स्पेशल चिल्ड्रेन फाउंडेशन की संस्थापक नरिंदर कौर ने कहा कि यह केवल एक समारोह नहीं है बल्कि यह समाज में एक क्रांति है यह सुरताज की शुरुआत है। सुरताज एक मिशन है यह एक दिव्य कार्य है जो इस जीवनकाल में ईश्वर के उद्देश्य से उत्पन्न हुआ है। यह उन बच्चों के लिए आशा की किरण है जो समाज में अनदेखे हैं, और उन माता-पिताओं के लिए भी जो अनसुने हैं जो अपने संघर्षों को चुपचाप सह रहे हैं। सरताज उनके साथ खड़ा है, उनका समर्थन करता है, और उन्हें प्रेम करता है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें और गरिमा के साथ जीवन जी सकें।
गौरतलब है कि नरिंदर कौर स्वयं 100% दिव्यांग बच्ची प्रभजोत कौर की अकेली माँ हैं। फाउंडेशन का नाम ‘सुरताज ’ उनके माता-पिता सुरेंद्र पाल सिंह और तजिंदर कौर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने प्रभजोत की देखभाल में अपना जीवन समर्पित कर दिया है और नरिंदर के हर कदम पर उनका साथ दिया है।पेन-टू-पर्पज अवॉर्ड सेरेमनी ने एक सशक्त संदेश दिया कि विशेष ज़रूरतों वाले बच्चे दिव्यांग नहीं हैं बल्कि उन्हें समाज ही दिव्यांग बनाता है। वे असीमित प्रतिभाशाली और जश्न के योग्य हैं।