
पंडित जवाहरलाल नेहरू: आधुनिक भारत के निर्माता
- आज के दौर में नेहरू को अक्सर केवल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाता है, और उनकी छवि को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। यह दृष्टिकोण उनकी देशभक्ति, उनके बलिदान और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को कमतर करता है। नेहरू एक ऐसे देशभक्त थे, जिन्होंने अपनी जवानी, अपनी शिक्षा और अपने जीवन के सुनहरे वर्ष स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित किए। वे न केवल एक नेता थे, बल्कि एक विचारक थे, जिन्होंने भारत के भविष्य के लिए एक सपना देखा और उसे साकार करने के लिए अथक प्रयास किया।
27 मई, 2025 को भारत अपने प्रथम प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि मना रहा है। नेहरू केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी देशभक्त, विचारक, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया। उनकी पुण्यतिथि पर यह लेख उनके जीवन, उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनकी भूमिका और उन्हें “आधुनिक भारत का निर्माता” कहे जाने के कारणों पर प्रकाश डालता है। साथ ही, यह इस बात पर भी जोर देता है कि नेहरू को केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में देखना उनकी देशभक्ति और बलिदान को कमतर आंकना होगा।
|| Karamvir Kamal
स्वतंत्रता संग्राम में नेहरू का योगदान, एक युवा देशभक्त का उदय
पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर, 1889 को इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा इंग्लैंड में हुई, जहां उन्होंने हैरो स्कूल और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। 1912 में भारत लौटने के बाद, वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़े और धीरे-धीरे स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता बन गए। नेहरू का स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद हुआ, जिसने उन्हें गहरे रूप से प्रभावित किया। इस घटना ने उन्हें ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
असहयोग आंदोलन और जेल यात्राएं
1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन में नेहरू ने सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया, खादी को अपनाया और जनता को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान उनकी पहली गिरफ्तारी 1921 में हुई, जो उनके जीवन में कई जेल यात्राओं की शुरुआत थी। नेहरू ने अपने जीवन के लगभग नौ वर्ष विभिन्न जेलों में बिताए, जहां उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम की रणनीतियों पर विचार किया, बल्कि “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” और “ग्लिम्प्स ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री” जैसे कालजयी ग्रंथ भी लिखे। इन पुस्तकों ने भारतीय जनमानस को अपनी सांस्कृतिक विरासत और वैश्विक इतिहास से जोड़ा।
कांग्रेस के युवा नेता और समाजवादी दृष्टिकोण
नेहरू कांग्रेस के युवा और प्रगतिशील नेताओं में से एक थे। 1929 में लाहौर अधिवेशन में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया, जहां “पूर्ण स्वराज” का प्रस्ताव पारित किया गया। नेहरू ने न केवल स्वतंत्रता की मांग को मजबूत किया, बल्कि सामाजिक-आर्थिक समानता और समाजवादी विचारों को भी बढ़ावा दिया। उन्होंने गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ाई को स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनाया, जिससे उनका दृष्टिकोण समावेशी और जन-केंद्रित बन गया।
नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन
1930 में गांधीजी के नेतृत्व में शुरू हुए नमक सत्याग्रह में नेहरू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन को संगठित करने में मदद की और जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया। इस दौरान उनकी बार-बार गिरफ्तारियां और जेल यात्राएं उनकी दृढ़ता और देशभक्ति का प्रतीक बन गईं। नेहरू ने न केवल नेतृत्व किया, बल्कि युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा मिली।
स्वतंत्र भारत के निर्माण में नेहरू का योगदान
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री
15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। उनके सामने एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करने की चुनौती थी, जो सदियों की गुलामी, सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और सांप्रदायिक विभाजन से जूझ रहा था। नेहरू ने इस चुनौती को स्वीकार किया और भारत को एक मजबूत, एकजुट और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने के लिए नींव रखी।
लोकतंत्र की स्थापना
नेहरू का सबसे बड़ा योगदान भारत में लोकतंत्र की स्थापना और उसकी जड़ों को मजबूत करना था। उन्होंने संविधान सभा के साथ मिलकर भारतीय संविधान को आकार दिया, जो 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। नेहरू ने संसदीय लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समानता के सिद्धांतों को भारत की शासन व्यवस्था का आधार बनाया। उनकी नीतियों ने भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाया, जहां सभी धर्मों, जातियों और समुदायों को समान अधिकार प्राप्त हुए।
आर्थिक और औद्योगिक विकास
नेहरू ने स्वतंत्र भारत के आर्थिक विकास के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया। उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करने पर जोर दिया और भारी उद्योगों, इस्पात संयंत्रों, बांधों और बिजली परियोजनाओं की स्थापना की। भिलाई, राउरकेला और दुर्गापुर जैसे इस्पात संयंत्रों की स्थापना ने भारत को औद्योगिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में मदद की। नेहरू ने बांधों को “आधुनिक भारत के मंदिर” कहा, जो उनकी विकास-केंद्रित सोच को दर्शाता है। भाखड़ा-नंगल बांध जैसी परियोजनाएं उनकी दूरदर्शिता का प्रतीक हैं।
विज्ञान और शिक्षा का विकास
नेहरू ने विज्ञान और तकनीक को राष्ट्र निर्माण का आधार माना। उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) जैसे संस्थानों की स्थापना को बढ़ावा दिया। उनकी नीतियों ने वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहन दिया, जिसने भारत को वैश्विक मंच पर एक मजबूत स्थान दिलाया। नेहरू का मानना था कि शिक्षा और विज्ञान ही भारत को आधुनिक और प्रगतिशील बनाएंगे।
विदेश नीति और गुट-निरपेक्षता
नेहरू ने भारत की विदेश नीति को एक नई दिशा दी। उन्होंने गुट-निरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो शीत युद्ध के दौर में भारत को पूर्व और पश्चिमी गुटों से अलग रखने में सफल रहा। उनकी पंचशील नीति ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया। नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत की आवाज को बुलंद किया और विश्व शांति के लिए भारत की प्रतिबद्धता को स्थापित किया।
आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में नेहरू
नेहरू को “आधुनिक भारत का निर्माता” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारत को एक आधुनिक, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की नींव रखी। उनकी दूरदर्शी नीतियों ने भारत को औद्योगिक, वैज्ञानिक और शैक्षिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाया। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए इसे आधुनिकता के साथ जोड़ा। उनकी धर्मनिरपेक्ष नीतियों ने भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाया, जहां विविधता में एकता का सिद्धांत फलता-फूलता है।
नेहरू की समाजवादी सोच ने गरीबों और वंचितों के उत्थान को प्राथमिकता दी। उनकी योजनाओं ने ग्रामीण भारत को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से उन्होंने भारत के आर्थिक ढांचे को मजबूत किया और कृषि, उद्योग और बुनियादी ढांचे के विकास को गति दी। उनकी विदेश नीति ने भारत को वैश्विक मंच पर एक सम्मानजनक स्थान दिलाया।
नेहरू: एक महान देशभक्त, न कि केवल राजनेता
आज के दौर में नेहरू को अक्सर केवल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाता है, और उनकी छवि को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। यह दृष्टिकोण उनकी देशभक्ति, उनके बलिदान और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को कमतर करता है। नेहरू एक ऐसे देशभक्त थे, जिन्होंने अपनी जवानी, अपनी शिक्षा और अपने जीवन के सुनहरे वर्ष स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित किए। वे न केवल एक नेता थे, बल्कि एक विचारक थे, जिन्होंने भारत के भविष्य के लिए एक सपना देखा और उसे साकार करने के लिए अथक प्रयास किया।
नेहरू ने जेल की सलाखों के पीछे वर्षों बिताए, लेकिन उनका हौसला कभी नहीं टूटा। उनकी पुस्तकें, उनके भाषण और उनकी नीतियां इस बात का प्रमाण हैं कि वे भारत को केवल स्वतंत्र ही नहीं, बल्कि एक मजबूत, एकजुट और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे। उन्हें केवल एक राजनेता के रूप में देखना उनके बलिदान और देशभक्ति को नजरअंदाज करना होगा। देशवासियों को यह समझना चाहिए कि नेहरू का योगदान केवल सत्ता तक सीमित नहीं था; वे एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने भारत के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।
अंत मे यह कहना गलत नहीं होगा पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन और उनका योगदान भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका, स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनकी नीतियां और उनकी दूरदर्शी सोच ने भारत को एक नई दिशा दी। नेहरू केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक महान देशभक्त, विचारक और आधुनिक भारत के निर्माता थे। उनकी पुण्यतिथि पर हमें उनके योगदान को याद करने और उनके सपनों के भारत को और मजबूत करने का संकल्प लेना चाहिए। नेहरू का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची देशभक्ति केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म और बलिदान में होती है।