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प्रत्येक उत्पाद एक कहानी सुनाता है

सुमन बाजपेयी

सम्पूर्णा एक ऐसी गैर सरकारी संस्था जो पिछले 32 वर्षों से निरंतर काम कर समाज को एक नई दिशा दे रही है। समय-समय वह नई गतिविधियों व अभियानों को आरंभ कर न सिर्फ गरीब बच्चों को रोजगार प्रदान करती है, वरन समाज के हर वर्ग को जो समर्थ हैं, उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित करती है कि वे आगे आएं और समाज के लिए कुछ करें। 1 अगस्त को नई दिल्ली के तिलक मार्ग स्थित ए ब-9 परिसर में डॉ. शोभा विजेन्द्र जी की अगुआई में सामाजिक संस्था सम्पूर्णा द्वारा एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस और भगवान की पोशाकों से बने हस्तनिर्मित उत्पादों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। यह आयोजन संस्था की नई और पवित्र पहल “पुनः अर्पित” के अंतर्गत हुआ, जिसका उद्देश्य भगवान को अर्पित की गई पवित्र पोशाकों का पुनर्चक्रण कर उन्हें उपयोगी, स्वदेशी और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों में परिवर्तित करना है। इस परियोजना के माध्यम से सम्पूर्णा की लाभार्थी महिलाएं सीता-लक्ष्मण सौभाग्य थैले, पूजा आसन, पोटलियां, पुस्तक आवरण, थाल-पोश, बच्चियों के वस्त्र आदि तैयार कर रही हैं। प्रदर्शनी में इन हस्तनिर्मित वस्तुओं की भव्यता, रंग-संयोजन और कलात्मकता ने आगंतुकों को अत्यंत प्रभावित किया। यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का माध्यम बनी, बल्कि महिलाओं को स्वावलंबी बनाने और सांस्कृतिक समर्पण का भी एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करती है।

भारत की परंपरा में भगवान को नए वस्त्र अर्पित करना एक गहरा आध्यात्मिक भाव है। एक अनुमान के अनुसार भारतवर्ष में 8 लाख से भी अधिक मंदिर है। हर वर्ष लाखों पोशाक श्रद्धा सहित भगवान को अर्पित की जाती हैं। इन पोशाकों को समय-समय पर मौसम एवं पर्व अनुसार बदलना भी सनातन परपरा का एक अनूठा पहलू है। ये पोशाकें अकसर कुछ समय बाद नदियों, नालों या पीपल जैसे पवित्र वृक्षों के नीचे छोड़ दी जाती है- एक परंपरा जो कभी तर्कसगत थी, आज के समय में वह जल प्रदूषण, कचरा वृद्धि, और वस्त्र बर्बादी जैसी समस्याओं को जन्म दे रही है।

इस अवसर पर डॉ. शोभा विजेन्द्र ने बताया कि भारत की परंपरा में भगवान को अर्पित किए गए वस्त्रों का अत्यंत श्रद्धा से विसर्जन किया जाता है, परंतु आज के समय में यह परंपरा जल स्रोतों और पर्यावरण के लिए संकट बनती जा रही है। इन्हीं चिंताओं से प्रेरित होकर सम्पूर्णा ने “पुनः अर्पित” परियोजना की शुरुआत की है, जिससे पुराने पवित्र वस्त्रों का सम्मानपूर्वक उपयोग हो सके और उन्हें नए रूप में समाज को वापस लौटाया जा सके।

प्रत्येक उत्पाद एक कहानी है- भक्ति, सेवा और पुनः अर्पण की। यह केवल पुनर्चक्रण नहीं, यह एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण है, जहां सर्कुलर इकोनॉमी भारतीय संस्कृति से हाथ मिलाती है।

इस अवसर पर सम्पूर्णा की कार्यकारी सदस्य श्रीमती निधि गोयल ने कहा कि यह पहल केवल पुनर्चक्रण नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण और सतत विकास का सशक्त उदाहरण है। उन्होंने बताया कि महिलाएं इस परियोजना के माध्यम से न केवल आत्मनिर्भर बन रही हैं, बल्कि समाज में एक सकारात्मक सांस्कृतिक संदेश भी दे रही हैं।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई प्रतिष्ठित हस्तियाँ उपस्थित रहीं, जिनमें फिक्की फ्लो अध्यक्षा श्रीमती पूनम शर्मा, हज समिति अध्यक्षा श्रीमती कौसर जहां, विधायक श्री करनैल सिंह (शकूर बस्ती), विधायक श्रीमती पूनम शर्मा (वज़ीरपुर), श्रीमती राधा भाटिया प्रबंध निर्देशक रोसिएट होटल, रोटरी क्लब प्रतिनिधि श्रीमती गीतांजलि भसीन, श्रीमती रीमा, श्रीमती संगीता सिन्हा, श्रीमती रश्मि गोयला आदि शामिल रहीं। इन सभी गणमान्य अतिथियों ने सम्पूर्णा के इस नवाचार की सराहना की और इसे “आस्था, रोजगार और प्रकृति को जोड़ने वाला सामाजिक आंदोलन” बताया।

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