Art & CultureLiterature

आप्रेशन सिंदूर

विजया गुप्ता 'सुवर्ण किंशुक'

अरे ओ आतंकी पहलगाम के !
इंसान नहीं तुम कौड़ी छदाम के
सुहागिनों का सिंदूर पौंछा
जानी दुश्मन क्यों हुए अवाम के?

नष्ट हुए सब तुम्हारे ठिकाने
शेष रहा न कोई अश्रु बहाने
कायर समझा था क्या तुमने हमें
कुचल दिये सब आतंकी मुहाने।

जवानों को चिंता है सिंदूर की
करनी है हिफाज़त उसके नूर की
सिंदूर आप्रेशन के इस मिशन ने
कौड़ी फेंकी है बहुत ही दूर की।

अब सिंदूर की लाली रुलाएगी
मौत की नींद तुम्हें सुलाएगी
शर्म और हया कुछ रही न बाकी
तुम्हारी करनी ही सताएगी।

त्राहि त्राहि कर उठा है पाकिस्तान
सिर पकड़ अपना अब वह रो रहा है
नहीं बचेगा नामोनिशान किंचित
धैर्य व साहस अपना खो रहा है।


विजया गुप्ता ‘ सुवर्ण किंशुक

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *