मौत ने दे दिया ज़मानत हमें…
ना रहीं चाहतें चाहने की तुम्हें,
हो गई है सुनो अब नदामत हमें।
बेखुदी में मिली है जहालत हमें,
है नहीं देख लो अब बगावत हमें।
जान ले ना गई ये अदा उफ तिरी,
थी कयामत दिया जो मुगालत हमें।
दर्द भी अब कहीं है सिसकता रहा,
मौत ने है दिया अब जमानत हमें।
जिंदगी में कभी जो मिले हम कही,
मान लेना खुदा की इनायत हमें ।
भा गई इस कदर यार की बेखुदी,
क्या कहें क्या मिली गम विरासत हमें।
करुणा कलिका- कवयित्री व ग़ज़लगो, बोकारो स्टील सिटी- झारखंड.